विश्व शांति और समृद्धि के लिए गाय जैसा कोई नहीं: नवीन गोयल

-गऊशाला छावनी गुडग़ांव के 118वां वार्षिक उत्सव के लिए नवीन गोयल को दिया निमंत्रण

गुरुग्राम। बस अड्डे के सामने स्थित श्री गुडग़ांव गोशाला सभा (गऊशाला छावनी गुडग़ांव) का 118वां वार्षिक उत्सव आगामी 14 जनवरी 2024 को धूमधाम से मनाया जाएगा। इस अवसर पर विष्णु कांत शास्त्री ने हर साल की तरह सांग करके लोगों को अपनी पौराणिक संस्कृति से जोड़ेंगे। इस आयोजन में शिरकत करने के लिए गोशाला सभा के पदाधिकारियों ने पर्यावरण संरक्षण विभाग भाजपा हरियाणा के प्रमुख एवं एक भारत श्रेष्ठ भारत कमेटी के प्रदेश सह-संयोजक नवीन गोयल को निमंत्रण दिया।

निमंत्रण देने के लिए गोशाला की तरफ से प्रधान श्याम सिंह ठाकरान, सचिव ओमप्रकाश सहरावत, कोषाध्यक्ष ईश्वर सिंह, उपाध्यक्ष राम सैनी, कार्यकारिणी सदस्य नत्थू सरपंच, कार्यकारिणी सदस्य ओमप्रकाश कटारिया, कार्यकारिणी सदस्य अशोक पूर्व सरपंच, कार्यकारिणी सदस्य सतपाल गाड़ोली सेक्टर-17 स्थित माधव धाम पहुंचे। इस दौरान नवीन गोयल ने कहा कि विश्व शांति और समृद्धि के लिए गाय जैसा कोई नहीं है। गौमाता को हम भगवान के बराबर दर्जा देते हैं। अनादिकाल से गाय का लौकिक और पारमर्थिक क्षेत्र में महत्व रहा है। इसलिए गाय को विश्व की माता के रूप में प्रतिष्ठित किया गया है। गाय के शरीर में 33 करोड़ देवताओं का अधिवास रहता है। गाय परम पूजनीय है। भगवान का धराधाम पर अवतरण गौ रक्षा के लिए होता है। शुचिता और पावनता के लिए पंच गव्य (दूध, दही, घी, गाय का गोबर और गोमूत्र) का प्रयोग होता है। नवीन गोयल ने कहा कि भारत में किसी पर्व के अवसर पर यदि किसी व्यक्ति का निधन हो जाता है तो पर्व नहीं मनाया जाता था। लेकिन उस गमी के पर्व पर गाय बछड़े को जन्म दे देती थी तो पर्व हर्षोल्लास से मनाया जाता था।

नवीन गोयल ने कहा कि यदि विश्व में समृद्धि और शांति स्थापित करनी है तो गौवध पर प्रतिबंध लगाना चाहिए। कृषि कार्य में गोवंश के प्रयोग को अधिक महत्व देना चाहिए। हमारी संस्कृति में गौ माता को सर्वोच्च स्थान है। हमारी संस्कृति इतनी महान है। हमारी परंपरा इतनी महान है कि हम प्रतिष्ठा देकर एक पत्थर को भी, एक प्रतिमा को भी भगवान बना देते हैं। महापुरुषों का भी कथन है कि गौमाता तो चलता फिरता देवालय है, विश्व की मां है। हमारे वेद, पुराणों एवं ग्रंथों ने, हमारे पूर्वजों ने, हमारे बड़ों ने गाय को माता के रूप में स्वीकार किया है। पुराने जमाने में हमारी दादी, नानी, घर की माताएं सबसे पहले सुबह उठकर गाय की पीठ पर हाथ फेरा करती थी। इस हाथ फेरने का मतलब कि हमने सुबह-सुबह सूर्यनारायण प्रभु से हाथ मिला लिया। हमें गौ माता को सम्मान देना चाहिए।
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