-सावित्री बाई फुले की जयंती पर कन्या कालेज में उनकी प्रतिमा पर किया माल्यार्पण
-डा. डीपी गोयल, नवीन गोयल के प्रयासों से ही कालेज में लगी है प्रतिमा
गुरुग्राम। रेलवे सलाहकार समिति के सदस्य डा. डीपी गोयल ने बुधवार को यहां राजकीय कन्या महाविद्यालय सेक्टर-14 में माता सावित्री बाई फुले की जयंती मनाते हुए उनकी प्रतिमा पर माल्यार्पण किया। उनके साथ ऑल इंडिया सैनी सेवा समाज के राष्ट्रीय अध्यक्ष दिलबाग सैनी, नीलम सैनी, रेखा सैनी, योगिता सैनी समेत कई गणमान्य लोग मौजूद रहे।
डा. डीपी गोयल ने कहा कि महान समाज सेविका, देश की प्रथम महिला शिक्षिका, नारी मुक्ति आंदोलन की प्रणेता सावित्रीबाई फुले जी की जयंती पर उन्हें कोटि-कोटि नमन है। उन्होंने कहा कि गुरुग्राम में माता सावित्री बाई फुले की प्रतिमा बेटियों के महाविद्यालय में इसलिए लगवाया गया कि यहां पढऩे वाले हजारों छात्राएं उनसे पे्ररणा ले सकें। जीवन में माता सावित्री बाई फुले ने कई कठिनाइयां झेलीं, मगर अपने लक्ष्य से नहीं भटकीं। गत वर्ष हमारे संयुक्त प्रयासों से राजकीय कन्या महाविद्यालय सेक्टर-14 में नारी सशक्तिकरण की मिसाल माता सावित्रीबाई फुले जी की प्रतिमा स्थापित की गई, जिससे आज हजारों छात्राएं प्रेरित हो रही हैं।
उन्होंने कहा कि माता सावित्रीबाई फुले जी का नाम आते ही सबसे पहले शिक्षा और समाज सुधार के क्षेत्र में उनका योगदान हमारे सामने आता है। वे हमेशा महिलाओं और वंचितों की शिक्षा के लिए जोरदार तरीके से आवाज उठाती रहीं। शिक्षा से समाज के सशक्तिकरण पर उनका गहरा विश्वास था। लोगों से हमेशा उनका यह आग्रह रहा कि वे जरुरत में एक-दूसरे की मदद करें और प्रकृति के साथ भी समरसता से रहें। मानवता को समर्पित उनका जीवन आज भी हम सभी को प्रेरित कर रहा है। देश की महान विभूतियों के योगदान को हमें याद करने की जरूरत है। साथ ही उनसे प्रेरणा लेकर हम अपने जीवन को सार्थक कर सकते हैं।
डा. डीपी गोयल ने कहा कि महाराष्ट्र के सतारा जिले के छोटे से गांव में जन्मी सावित्रीबाई फुले ने लड़कियों की शिक्षा के लिए लंबी लड़ाई लड़ी। खुद शिक्षित होकर लड़कियों के लिए देश का पहला महिला विद्यालय खोला। जिस समय पर शिक्षा के लिए आवाज उठाई, उस दौर में लड़कियों की शिक्षा पर कई तरह की पाबंदियां लगी हुई थीं। ऐसे में उन्हें लड़कियों और महिलाओं को शिक्षा का अधिकार दिलाने के लिए काफी संघर्ष करना पड़ा। अपने पति के साथ महाराष्ट्र में उन्होंने भारत में महिलाओं के अधिकारों को बेहतर बनाने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने अपने पति के साथ मिलकर कई आंदोलनों में भाग लिया, जिसमें से एक सतीप्रथा भी थी। उन्होंने शिक्षा के साथ-साथ नारी को उनके कई अधिकार दिलाए। नारी मुक्ति आंदोलन की प्रणेता सावित्रीबाई फुले ने समाज में फैली छुआछुत को मिटाने के लिए भी कड़ा संघर्ष किया, जो समाज में शोषित हो रही महिलाओं को शिक्षित करके अन्याय के खिलाफ आवाज उठाना सिखाया। 10 मार्च 1897 को सावित्रीबाई फुले का प्लेग की बीमारी से निधन हो गया था।