गुरुग्राम। गुरू गोविंद सिंह जी की जयंती के अवसर पर पर्यावरण संरक्षण विभाग भाजपा हरियाणा के प्रमुख एवं एक भारत श्रेष्ठ भारत कमेटी के प्रदेश सह-संयोजक नवीन गोयल ने गुरुद्वारा सिंह सभा में मत्था टेका। उन्होंने सभी के सुखी, स्वस्थ होने, गुरुग्राम की तरक्की व खुशहाली की कामना की। शौर्य और साहस के प्रतीक गुरू गोबिंद सिंह जी सिख धर्म के दसवें गुरू थे। इस अवसर पर गुरुद्वारा की ओर से शेर दिल सिंह संधू, मनजीत  सिंह, जसमाल संधू, कमलजीत सिंह, गगन सिद्धू आदि ने नवीन गोयल का सम्मान किया।

इस अवसर पर सभी को शुभकामनाएं देते हुए नवीन गोयल ने कहा कि गुरु गोबिंद सिंह जी का जीवन और उनके द्वारा अपने पुत्रों का दिया गया बलिदान सर्वोच्च बलिदान कहा जा सकता है। इतिहास में दर्ज है कि गुरू गोबिंद सिंह जी ने ही खालसा पंथ की स्थापना की थी। नवीन गोयल ने कहा कि नेकी, ईमानदारी, सच्चाई, परहित की सोच की हमें गुरू गोबिंद सिंह जी से सीख लेनी चाहिए। उनका जीवन समस्त मानव जाति के लिए बहुत बड़ा संदेश है। समाज को एकता के सूत्र में पिरोने के लिए गुरूजी ने हर पल कार्य किया। उन्होंने ही सिखों को पंच ककार धारण करने को कहा था। तभी से केश, कृपाण, कंघा, कड़ा और कच्छा पांच ककार सिखों की पहचान हैं। उन्होंने ही बैसाखी के दिन खालसा पंथ की स्थापना की थी। गुरु गोबिंद सिंह जी ने ही खालसा वाणी, वाहे गुरु की खालसा, वाहेगुरु की फतेह दिया था। खालसा पंथ की स्थापना के पीछे उनका उद्देश्य धर्म की रक्षा करना और मुगलों के अत्याचारों से मुक्ति दिलाना था। उन्होंने अन्याय, अत्याचार और पापों को खत्म करने के लिए और धर्म की रक्षा के लिए मुगलों के साथ 14 युद्ध लड़े। धर्म की रक्षा के लिए समस्त परिवार का बलिदान किया, जिसके लिए उन्हें सरबंसदानी (पूरे परिवार का दानी) भी कहा जाता है।

नवीन गोयल ने कहा कि जनसाधारण में वे कलगीधर, दशमेश, बाजांवाले, आदि कई नाम, उपनाम व उपाधियों से भी जाने जाते हैं। उन्होंने सदा प्रेम, सदाचार और भाईचारे का सन्देश दिया। इतिहास यह भी बताता है कि किसी ने उनका अहित करने की कोशिश भी की तो उन्होंने अपनी सहनशीलता, मधुरता, सौम्यता से उसे परास्त कर दिया। गुरुजी की मान्यता थी कि मनुष्य को किसी को डराना भी नहीं चाहिए। ना किसी से डरना चाहिए। वे बाल्यकाल से ही सरल, सहज, भक्ति-भाव वाले कर्मयोगी थे। उनकी वाणी में मधुरता, सादगी, सौजन्यता एवं वैराग्य की भावना कूट-कूटकर भरी थी। उनके जीवन का प्रथम दर्शन ही था कि धर्म का मार्ग सत्य का मार्ग है और सत्य की सदैव विजय होती है।